मथुरा बकफ गजब में शाही ईदगाह मस्जिद के नाम नहीं है दर्ज कोई संपत्ति

मथुरा बकफ गजब में शाही ईदगाह मस्जिद के नाम नहीं है दर्ज कोई संपत्ति

मथुरा। 34 साल पहले प्रकाशित मथुरा की वक्फ संपत्तियों के गजट में शाही ईदगाह मस्जिद के नाम से कोई वक्फ संपत्ति दर्ज नहीं है। यह जानकारी श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह को सर्वे कमिश्नर वक्फ बोर्ड लखनऊ ने आरटीआई के तहत उपलब्ध कराई है। उन्होंने वक्फ संपत्तियों की जांच के लिए राजस्व परिषद और सीएम को पत्र लिखा है।

एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से वक्स संपत्तियों के गजट की प्रमाणित प्रति प्राप्त की थी। 1990 में प्रकाशित हुए इस गजट में वक्फ के ना कुल 825 संपत्तियां दर्ज हैं। इन संपत्तियों में हाथरस की सादाबाद तहसील की वक्फ संपत्तियां भी शामिल हैं। दरअसल तब सादाबाद तहसील मथुरा में थी। इन संपत्तियों का कुल रकबा 351 एकड़ के करीब है। ये सभी संपत्तियां कब्रिस्तान, मस्जिद, दरगाह और इमामबाड़ा के नाम से हैं।

साथ ही एक आरटीआई के जवाब में सर्वे कमिश्नर वक्फ बोर्ड लखनऊ की ओर से उपलब्ध कराई गई सूचना में बताया गया कि वक्फ की संपत्तियों में शाही मस्जिद ईदगाह डीग गेट के नाम से कोई संपत्ति दर्ज नहीं है। अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने मथुरा की वक्फ संपत्तियों की जांच के लिए राजस्व परिषद लखनऊ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजा है।

कई संपत्तियों में केवल दर्ज है चौहद्दी 18 अगस्त 1990 को मथुरा जिले की वक्फ संपत्तियों का गजट उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा ने कराया गया था, जो 27 मई 1987 की उस अधिसूचना पर आधारित था। जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि गजट में कई संपत्तियां ऐसी हैं जिनका रकबा नहीं खोला गया है। उनके सामने केवल चौहद्दी का उल्लेख किया गया है।

उन्होंने बताया कि ये संपत्तियां बेशकीमती हैं। स्थिति यह है कि एक-एक गांव में वक्फ बोर्ड की एक से अधिक संपत्तियां भी हैं। इनमें देवसेरस, हथिया, विशंभरा, दौलतपुर, शाहपुर, कोसीकलां, खावल, जावरा, कराहारी, मांट आदि गांव शामिल हैं। छावनी क्षेत्र में भी एक मस्जिद की भूमि का जिक्र वर्ग फुट में किया गया है तो दूसरी की चौहद्दी दर्ज की गई है।

तनवीर अहमद, सचिव शादी मस्जिद ईदगाह मथुरा ने कहा, श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही मस्जिद ईदगाह का मामला न्यायालय में चल रहा है। वक्फ संपत्ति में शाही मस्जिद ईदगाह दर्ज है, इसकी प्रमाणित प्रति न्यायालय में भी उपलब्ध कराई गई है। अगर दूसरे पक्ष के पास ऐसा कोई अभिलेख है तो वह न्यायालय में दाखिल क्यों नहीं करते हैं।